सैंकड़ो वर्षो पहले की प्राचीन परम्पराओं को आज तलक अपने जीवन मे सहेजे-संभाले रखने वाला बीकानेर का पुष्टिकर (पुष्करणा) ब्रह्माण समाज अपनी विशिष्ट लाइफ स्टाइल और सांस्कृतिक-आध्यात्मिक चेतना के लिये पहचाना जाता है। यह समाज आज की व्यस्त जिन्दगी मे भी हर छोटे से छोट त्यौंहार को भी पूरी तैयारी के साथ पूर्ण परमपरागत स्वरूप में मनाता है। जिस समाज के लोग झडूला, यज्ञोपवित, अगरनी (साधपुराई) और मासमा जैसे छोटे – मोटे मांगलिक कार्यो मे किसी भी प्रकार की कोताही नहीं बरतते, उनके लिये ‘विवाह संस्कार’ क्या मायने रखता है इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। समाज में सगाई से लेकर वधू के ससुराल आने और उसके ‘जात लगाने’ तक के सभी नेगचार पूर्ण उत्साह एवं शास्त्र सम्मत विधान के द्वारा सम्पन्न किए जाते है। हर रीति-रिवाज को आनन्द दायक और अपने आप मे विचित्र अनुभव होता है।
छींकी कहते हैं। गणेश परिक्रमा को…
विवाह का मांगलिक कार्य हर प्रकार से निर्विघ्न सम्पन्न हो, इसके लिये विघ्न विनाशक गणेश जी को सभी तरह से प्रसन्न किया जाता है। गणेश परिक्रमा के अंतर्गत विवाह स्थल के निकट के चार चैराहो पर पूजाएँ की जाती है ताकि विवाह स्थल तक आने वाले मार्ग निष्कंटक बने। इस यहां की भाषा मे ‘छींकी’ फिरने के दौरान वर या वधू के साथ जाने वाले परिवार के सभी लोग देवराज इन्द्र की वीरता के गुणों का बखान करने वाले ‘रूद्री’ के मन्त्र का समवेत् स्वरों में उद्घोष करते चलते है। बीकानेर मे पुष्करणा समाज में इस मन्त्र को इस प्रकार बोला जाता है।
‘‘ओम ना सूशी सा, भोम बिरखा भोम, घना घण क्षेत्रवीणा’’
मार्ग के शत्रुओ व बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करने वाले यजुर्वेद के इस मन्त्र का वास्तिवक स्वरूप यह है-
।।ऊँ।। आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभण्श्चर्षणीनाम्।
सक्रंदानो निमिष एक वीरः शत् सेना अजेयत् साकमिंद्रः।।
‘छींकी’ या गणेश परिक्रमा की चैथी पूजा वर या वधू के ससुराल के घर के बाहर होती है। इस पूजा के दौरान वर या वधू को ‘पोखना’ एक तरह से वर-वधू का लघु स्वास्थ्य परीक्षण होता है। वर-वधू की नजर उतारने के लि ‘लूण पाणी’ किया जाता है। ‘छींकी’ मे वर वधू को आटे के सात फल देकर उनका ‘खोला’ (गोद) भरी जाती है। फोटो दाऊ जी व्यास