वैष्णव पत्रिका :- भारत एक भावना प्रधान देश हैं जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी संवेदनायें समाज और देश को समर्पित करने के लिए हर पल आतुर रहता हैं। भावुकता या संवेदना किसी बीमारी का नाम नहीं हैं लेकिन यदि भावुकता का संतुलन धर्मसंगत या ज्ञानसंगत ना हो तो वह गंभीर बीमारी का रूप ले सकती हैं। भावुकता नामक बीमारी का उद्भव तथाकथित राजनेता और समाज सेवकों द्वारा होता हैं। समाज और शहर का निर्माण किसी समाज सेवक और राजनेता से नहीं अपितु स्वभाव और व्यवहार में परमार्थ की भावना से होता हैं। परमार्थ आजकल एक नये रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हैं जिसमें जनहित योजनाओं को छायाचित्र, विडियोग्राफी और विज्ञापन द्वारा प्रेषित किया जाता हैं। स्वार्थ को सिद्व करने के लिए परमार्थ के मार्ग को अपनाया जाता हैं जिसमें संस्थायें, सामाजिक समितियां और एनजीओं जैसे साधन अग्रणी हैं। करीब दो दशक पहले तक भारतीय सामाजिक संस्थाओं और समितियों का रूप सेवा ही था लेकिन अब समाजसेवा के नाम पर लोगों की भावुकता के साथ व्यवसाय किया जा रहा हैं। वर्तमान संस्थाओं का लक्ष्य जनहित ना होकर धनहित हो चुका हैं। कई संस्थायें और एनजीओ की दुकान मौसम और फाइनेंसर पर आधारित हो चुकी है ऐसी व्यावसायिक संस्थायें और एनजीओं को भगवान और समाज सद्बुद्वि दें और वे अपने दूषित विचारों को त्याग समाज के प्रति सच्ची सेवा को धारण करें। सभी संस्थाओं और एनजीओं के उज्जवल भविष्य की मंगलकामना। शुभम् भवति। वैष्णव पत्रिका