वैष्णव पत्रिका:- आचार्य चौक का पुराना नाम सोनावतों का चौक था । यहां ओसवाल जाति के लोग बहुतायत में रहतें थे । कालान्तर में बच्छावत जाति के लोग भी निवास करने लगे जिसके कारण इस चौक को बच्छावतों का चौक भी कहा जाता है । ओसवाल जाति के लोगों की वंश बढ़ोतरी कम हो रही थी तथा कुछ लोग यहां से व्यापार के लिए चले गए जिसके कारण यहां धीरे-धीरे ओसवालों की संख्या बहुत कम हो गई । राजाओं के समय में आचार्य जाति के लोग बीकानेर के जूनागढ़ में रहते । कालान्तर में इनको स्थानान्तरित कर दिया गया और वे शहर के ऊंचे भू-भाग आचार्य चौक में आ बसे । बीकानेर में आचार्य जाति के लोग जैसलमेर से आए । आचार्य श्री जीवराज जी के वंश है । श्री जीवराज के पुत्र श्री वेणीदासजी एवं श्री बस्तरामजी संवत १६७० में बीकानेर के महाराजा श्री सूरसिंह एवं राजमाता गंगारानी के निमंत्रण पर जैसलमेर से यहां आए । राजमाता गंगारानी ने वेणीदासजी आचार्य से कहा कि मेरे पुत्र सूरसिंह की राज्य में अधिक मान्यता नहीं है । वेणीदास ने कहा कि आज से तीसरे वर्ष आपका पुत्र बीकानेर की राजगद्दी का अधिकारी होगा । यह कह कर वेणीदास तो तीर्थ पर चले गए किन्तु १६७० में राजमाता गंगारानी के पुत्र सूरसिंह को बीकानेर का राज्य मिला ।
जब राजा मन्दिरों में जाते थे तो प्रसाद एवं चरणामृत के लिए आचार्य चौक से ही आचार्य जाति के पंडित मंदिर में जाकर प्रसाद एवं चरणामृत देते थ । आचार्य जाति के लोग राजओं के सभी धार्मिक कार्य करते थे । इसलिए इसको ‘देहराजश्री की उपाधि दी गई थी । इसी जाति में जीतमल जी आचार्य हुए जो बहुत की विद्वान हुए। इनको राजाओं के द्वारा पिरोल बनाकर दिया जिसे श्रीराम गढ़ कहा जाता था । इसका अभिलेखागार में श्रीरामगढ़ है । यहां प्राचीन काल से चली आ रही आज भी एक रीति है कि किसी युवा की मुत्यू होती है तो उसको स्थानीय भैंरू जी मंदिर के पास से ले जाते ळें । अगर किसी वृद्ध की मुत्यू हो जाती है तो जीतमल जी आचार्य की पिरोल के सामने
से ले जाते हैं।
इसी मोहल्ले के श्री सूर्यकरण जी आचायर्स बीकानेर राज्य (महाराजा सार्दूलसिंह) के समय में विधि मंत्री भी रहें । इन्होंने सन् १९२१ में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए परीक्षा पास की तथा तीन वर्ष १९२४ में स्थानीय कानून की परीक्षा पास की । वे बीकानेर पुष्करणा जाति के पहले एम. ए. पास करने वाले प्रथम व्यक्ति थे ।
इस चौक में तीन महापुरूष हुए श्री महानंदजी, श्रीधरणीधरजी तथा मुरारदासजी । आचार्य चौक से सात सतियां हुई । पहले निवासी प्रत्येक माह की अमावस्या को सायंकाल में यहां की स्थानीय सतियों की पूजा करते थे । आचार्यकुल दिवाकर वेणीदासजी के पुत्र जयरामजी की पत्नी संवत १७३३ श्रावण शुक्ल चतुर्थी को बीकानेर में प्रथम सती हुई ।आचार्य जाति के अनेक सिद्ध पुरूषों में ब्रहमदत्त (ब्रहमादादा) व वेणीदत्त का नाम श्रद्धाभाव से लिया जाता है । महापुरूष ब्रहमदत्तजी की प्रत्येक आचार्य जाति के लोग माघ शुक्ल सप्तमी को पूजा करते है ।घर में सफेद मिट्टी से २१ लाइनों का गोल चक्र बनाकर उसमें दो बड़ी लकीर खीचीं जाति है तथा, धूप, दीप व नैवेध आदि से पूजा की जाती है । पूजन के दौरान घर परिवार की महिलाएं घुघट रखती है । ब्रहमादादा तीर्थ यात्राा पर गये थे तथा उस समय पैदल एवं गाड़े आदि पर यात्रा होती थी तो वह कई लम्बें समय तक घर नहीं पहुंचे तो उन्हें मृत मानकर बारह दिन के क्रियाकर्म कर दिए । बारहवेें दिन ब्रहमादादाजी अपने घर पहुंचे और उन्होंने देखा की घर में मेरे मरने के क्रियाकर्म सम्पन्न हो रहे है तो वे धरती पर 21 परिक्रमा लगाकर उसमे समा गये । उनकी चोटी समाधि के समय बाहर रह जाती है । जैसलमेर के दुर्ग में जीवम समाधिस्थ हुए ब्रहमादादाजी की याद में आचार्य जाति के लोग उनकी पूजा करते है ।
आचार्य के चौक में शिक्षा और राजनीति के प्रति सदैव रूझान रहा है । चौक के श्री मदन गोपाल आचार्य ने अपने पिता श्रीराम आचार्य की याद में सवंत १९७१ में सिटी कोतवाली के पीछे आचार्य श्रीराम विद्यालय की स्थापना की । इसी क्रम में चौक में जनसहयोग से सन् १९७८ में ‘नवयुवक मण्डल वाचनालय व पुस्तकालय की स्थापना की । देश के स्वाधीनता संग्राम में इसी मोहल्ले के दाऊलाल जी आचार्य का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । ज्योतिष के क्षेत्र में भी पं. आचार्य राज ने देश-विदेश में अपना नाम कमाया । संगीत के क्षेत्र में स्वर्गीय संदीप आचार्य ने बुलदियों का छूआ । साहित्य में नंदकिशोर आचार्य एवं मधू आचार्य ‘आशावादी का नाम अग्रणी रूप से लिया जाता है । आचार्य जाति का नाम ऊंचा करने वालों में इंटरनेशनल शिपिंग ब्यूरो – सिंगापुर में प्रबंध निदेशक जय आचार्य, अनुराग आचार्य (गुगल, अमेरिका) राजीव आचार्य (विन्डो-7 डवलपर्स, माइक्रोसॉफ्ट) रेखा आचार्य (वेटलिफ्टिंग) व पदम आचार्य (मर्चेट नेवी) शामिल है । राजनीति में ओम आचार्य, रामकिसन आचार्य, सत्यप्रकाश आचार्य, विजय आचार्य, किशोर आचार्य, संजय आचर्य एवं बृजराज आचार्य ने प्रसिद्धि प्राप्त की । वर्तमान में रामकिसन आचार्य भी एक इतिहास बनाने की अग्रसर है । धरणीधर मंदिर इसी क्रम में सबसे आगे है । रामकिसन आचार्य के संकल्प से आज धरणीधर धर्म, शिक्षा, खेल एवं मनोरंजन के क्षेत्र में नई ऊंचाइयां छू रहा है ।
आचार्यो चौक की अमरसिंह की रम्मत बहुत प्रसिद्ध है । इस रम्मत का लगभग 175 वर्ष पुराना इतिहास है । यह रम्मत सबसे प्राचीन रम्मत है । इस रम्मत को नया रूप मेघसा आचार्य व नन्दूसा आचार्य ने दिया ।
इस प्रकार बीकानेर में आचार्य चौक का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है ।
-संजय श्रीमाली