वैष्णव पत्रिका । जैसा कि चौक के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यहां बारह अलग-अलग जातियों के लोग रहते थे जिससे इस चौक का नामकरण हुआ है । इस चौक में मुख्यत: बारह जातियों में छह पुष्करणा व छ माहेश्वरी जातियां है । बारह जातियों में पुष्करणा की छह
जातियों में सूरदासाणी पुरोहित, ओझा, छंगाणी, किराडू , गंगादासाणी जोशी, बिदवाणी रंगा, माहेश्वरी समाज की जातियों में नथाणी, सादाणी, गांधी, गेलड़ ढोली व मूंधड़ा शामिल हैं । इस जातियों के बसने के बाद अन्य कई जातियों में छह जातियों के लोग चौक में आकर बस गए । वर्तमान में माहेश्वरी समाज की जातियों में छह जातियों अलावा फूफड़ा, लढा, लाहोटी, राठी$ भैया व करनाणी कुल बाहर जाति पुष्करणा समाज में प्रमुख छह जातियों के अलावा बोहरा , बिस्सा, देराश्री, रत्ताणी व्यास, आसाणी रंगा, सोमाणी रंगा, थानवी, पणिया, चूरा, गंढडिय़ा जोशी, कलवाणी, रमाणी पुरोहित मेऊसर के व्यास, घेरवाणी पुरोहित, मरोठ के रंगा, ज्योतिषी आचार्य, जैसलमेर के पुरोहित, कल्ला, मतड़ व गज्जाणी पुरोहित रहते हैँ । इनके अलावा सेवग, पूरबिया, राजपूत, माली, सोनार, राजगुरू पुरोहित, पालीवाल, छह न्याति ब्राहम्ण, नाई, श्रीमाली के अलावा कुछ घर मुसलमानों के भी है। बारह गुवाड़़ चौक इस बात की मिशाल देता है कि अनेकता होते हुए भी सभी में आपसी एकता और सद्भाव है ।
इस चौकके लोग पूजा पाठ, वेदपाठी तथा धार्मिक आयोजन करवाते थे । इसके साथ-साथ यहां के लोग योद्धा भी थे । बारह गुवाड़ चौक की सीमा मे पूर्व में रत्ताणी व्यासों का चौक, पश्चिम में नत्थूसर गेट, उत्तर में झंवरों का चौक, साले की होली एवं दक्षिण में भट्ठड़ो का चौक स्थित हैँ ।बारह गुवाड़ के कार्य कलापों व प्राचीन परम्पराओं के संचालन में सूरदासाणी पुरोहित की अहम भूमिका रही है । आवश्यकतानुसार सूरदासाणीपुरोहित बारह गुवाड़ की पुष्करणा समाज की जातियों को जबरेश्वर महादेव मंदिर में बुलाते हैं वही पर सर्वसम्मति से सामाजिक निर्णयलिए जाते थे । बताया जाता है कि भारत में जब राजतंत्र था उस समय भी बारह गुवाड़ चौक में लोकतंत्र थां । बारह गुवाड़ की सामाजिक वसांस्कृतिक व्यवस्था का संचालन यहीं होता था । समस्या होने पर पुष्करणा समाज की छह जातियों सूरदासाणी पुरोहित, ओझा, छंगाणी,किराडू, गंगदासाणी जोशी व बिदवाणी रंगा । न्यायोचित, पक्षपात रहित सर्वसम्मति सें निर्णय करती थी । निर्णय सर्वमान्य होता था । निर्णय में बीकानेर राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता था । यदि एक जाति किसी विषय पर अड़ जाती तब शेष जातियां अनुनय-विनय से उसे मना लेती थी । शिक्षा की दृष्टि से चौक के लोगों में आजादी के बाद अत्यधिक चेतना आई है । बारह गुवाड़ चौक में युवा वर्ग वेद मंत्रोच्चारण अच्छी तरह कर लेते हैं। शिक्षा के लिए चौक में पहले मारजा की पोसवालें थी । चौक के कई मारजा अन्य मोहल्ले की पोसवाले में भी शिक्षा देते थे । लाल मारजा, मीन मारजा, जेठा मारजा, मूलिया मारजा, फागणिया मारजा, छगन मारजा, हीरालाल मारजा, बैजिया मारजा व गिरधर मारजा आदि ने अनेक लोगो के शिक्षित किया ।
महिलाओं के लिए वर्तमान जीया भवन के पास प्राथमिक स्तर की स्कूल थी । स्कूल की अध्यापिका जाना व जिया मास्टरनी ने अनेक बालिकाओं को शिक्षित किया । वर्तमान में बारह गुवाड़ के नाम से बालक-बालिकाओं की उच्च प्राथमिक व बालिकाओं की सीनियर सैकण्डरी
तक की स्कूल पुष्करणा स्कूल के भवन में चल रहीं है । विद्यार्थी सभा में कवि सम्मेलन, मुशायरा, संगीत सम्मेलन, खेलकूद आदि आयोजन होते थे । विद्यार्थी सभा में संचालित महिला उद्योगशाला चांदरतन मूंधड़ा की कोटड़ी फरसोलाई पर कई समय चलती थी । हर सप्ताह रविवार को प्रधान चौक में लगाई जाती थी । स्व. द्धारका दत्त किराडू के नेतृत्व काल में यह संस्था के कार्य कलापों की चरम सीमा पर रही । बारह गुवाड़ क्षेत्र में कुछ ऐसे विख्यात स्थान भी है जो अपनी विशेषता एवं विचित्रता प्रदर्शित करते हैं । यहां आकाशनदी है जो बरसात के समय आकाश से आने वाले पानी से तीन-चार फीट पानी से भर जाती है । तत्पश्चात पूर्व स्थिति में आ जाती है । कोकड़ी बाग जहां कोई पेड़-पौधा व दूब आदि नहीं है लेकिन इस नाम से वर्षो से विख्यात है । सदाफते के पीछे एक निश्चित गाथा है । सदाऊते की तथ्यपरक घटना के अनुसार कोई राजा या दीवान हाथी पर सवार होकर बारह गुवाड़ से साले की होली की ओर गलियों गुजर रहा था । गलियों में चौंकियां उन्होंने तुड़वा दिए और अपना रास्ता बनाया । शिकायत राजा के पास गई । ब्राहमणों ने इस पर हड़ताल कर दी तब राजा चौक में आए । हकीकत को जानकर चौकियां बनवा दी । और सदाफतेह का नारा लगा । विजय का प्रतीक नारा आज भी लिखा जाता है । बारह गुवाड़ के निवासियों का जीवन धर्म प्रधान है । यहां यज्ञ आदि वृहद धार्मिक कृत्य भी समय-समय पर होते रहे हैं । बारह गुवाड़ के निवासियों द्वारा बारह गुवाड़ चौक में साले की होली चौक में तथा सूरदासाणियों की बगेची में बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन हुआ हैं । बुलाकी दास ओझा ‘बाब सा ने एक बार मोहता चौक में वर्षा के लिए वृहद यज्ञ किया था जिसमें तत्कालीन बीकानेर नरेश गंगासिंह हाथी की सवारी पर स्वयं पधारे थे । इन यज्ञाों के उपलक्ष में बारह गुवाड़ में प्रीतिभोज आयोजित किए गए थे । इसमें बारह गुवाड़ की परिधि के निवास करने वाली विभिन्न जातियों के लोगो ने प्रसाद लिया । बारह गुवाड़ का प्रीति भोज हुआ था । कई महाजनों ने भी शुभ अवसरों पर बारह गुवाड़ के पुष्करणों की 6 जातियों से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होता था । नत्थानियों की पिरोल में एक आले में पाबूजी की मूर्ति है जिसकी लोग पूजा करते हैं व दर्शनार्थी लाभ लेते हैं । पाबूजी क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हुए थे । जिनका एक लम्बा इतिहास भी है । यहां पर पाबूजी की फड़ बचाने की परम्परा रहीं है । भोपा व भोपी पाबूजी के चरित्र का सांगीतिक प्रदर्शन करते हैं । जो दर्शकों के लिए बहुत ही रोचक होता है । बारह गुवाड़ की परिधि में विद्यार्थी सीाा गायत्री पुस्तकालय, पुष्टिकर सभा, सूरदासाणी नवयुवक मंडल आदि कई सार्वजनिक एवं सामाजिक संस्थाएं जनसेवा में कार्यरत है । इनमें विद्याार्थी सभा का बारह गुवाड़ के शैक्षिक उत्थान में विशेष योगदान है । विद्यार्थी सभा के माध्यम से स्व. गंगादास, दाऊलाल जोशी, स्व. आशाराम, ब्रजरतन जी, द्वारका प्रसाद पुरोहित आदि ने समाज सेवा के विशेष कार्य किए । वर्तमान संस्था का निजी भवन प्रधान चौक में स्थित थी । इससे पूर्व यह संस्था जबरेश्वर महादेव मंदिर के नीचे तलघट में स्थित इसके पुस्तकालय में प्राचीन व नवीन ग्रंथो का बड़ा संग्रह है । इस संस्था द्वारा महिला उद्योगशाला, बाल विद्यालय रात्रि पाठशाला आदि भी संचालित की जाती थी । इस विद्यार्थी सभा में समय-समय पर बड़े राजनीतिज्ञ, शिक्षाप्रद, अधिकारी तथा समाज सेवक आते रहे है । नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी. केईराला राजस्थान के जयनारायण व्यास, मथुरादास माथुर, पूनमचंद बिश्नोई आदि शामिल है ।
‘कानाबारी नगर परकोटा की अन्य बारियों जैसी नहीं लेकिन बारह गुवाड़ में गांधी परिवार के घर के नीचे एक गेलरी है जो बारह गुवाड़ चौक व गांधियों की गली को मिलती है । यह सार्वजनिक सम्पर्क मार्ग के रूप में प्रयोग में आती है । इससे आने-जाने वाले के लिए कई मीटर की लम्बाई कम हो जाती है । प्रधान चौक में कई कड़ाव प्रदर्शनी के रूप में पड़े है जिन्हे देखकर आज का मानव आश्चर्य करता है कि क्या इनमें भी खाना बनता था । इन कड़ावों का विशेष रूप से ‘तीन धड़ व अन्य वृहद सामूहिक भोज का खाना बनाने में प्रयोग होता था । वर्तमान में रामदेवरा पैदल यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए हलवा बनाने में उपयोग होता है । वर्तमान में होली के अवसर पर डोलची पानी के खेल में इन कड़ावों का प्रयोग होता है । दूडिय़ा बाबा उर्फ दूडज़ी छंगाणी की खासियत थी कि वे अकेले ही इन कड़ावों को तकनीक से गाड़े पर रख देते थे । इन कड़ावों के मालिक छंगाणी पुष्करणा ब्राहमण है । उनको आज भी कड़ाव वाले छंगाणियों के नाम से जाना जाता है । चौक में एक ऐसा पाटा भी है जो छह फीट गुणा 12 फीट क्षेत्रफल का है । यह स्थायी रूप से जबरेश्वर महादेव मंदिर के पास ही स्थित रहता है । जहां पर बैठकर लोग नगर देश-विदेश की चर्चा करते हैं । सराय जो पहले कभी अतिथियों व आगन्तुकों के ठहरने का स्थान रहा होगा किन्तु अब वहां 100-150 घर विद्यमान है लेकिन इस स्थान का नाम अब भी सराय ही हैँ। बीकानेर में बहुत से दानवीर व समाजसेवी माहेश्वरी निवास करते हैं लेकिन बारह गुवाड़ के चांदरतन मूंधड़ा ने जो जन-कल्याण का कार्य किया वह चिर स्मरणीय है । उन्होंने ‘बल्लभ कुआं से पानी की पाइप-लाइन बारह गुवाड़ रत्ताणी व्यासों का चौक, साले की होली,नत्थूसर गेट व भाटोलाई तलाई तक अपने निजी व्यय से बिछवाई और वहां पर पानी के सार्वजनिक स्टेण्ड भी बनवाए । मूंधड़ा की पत्थर की हवेली बारह गुवाड चौक में अभी भी प्राचीन स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। वैष्णव पत्रिका
-संजय श्रीमाली