मर्यादा का पर्याय : कोचरों का चौक

शास्त्री और नेहरु के नजदीकी थे राम रतन जी कोचर

वैष्णव पत्रिका :- कोचरों का चौक बहुत ही भव्य है। इस चौक में कोचर जाति की अधिकता के कारण इसका नाम कोचरों का चौक प्रसिद्ध हुआ। कोचरों के चौक में चारों दिशाओं से रास्ते आते हैं तथा प्रत्येक दिशा में एक भोमियाजी बना हुआ है। पूर्व में गूजरों का मौहल्ला, पश्चिम में रांगडी चौक, उत्तर में सोनारों की गुवाड़ और दक्षिण में बेगानी चौक पड़ता है। जैन समाज की 27 गुवाड़ों में एक कोचरों का चौक भी है। लगभग सभी परिवार आरम्भ से ही राज परिवार से सम्बन्ध रखने वाले तथा व्यापारी वर्ग है। इस कारण आर्थिक रूप से भी समृद्ध है। इस चौक में कोचर जाति के अलावा, बांठिया, सुनार जाति आदि के लोग भी रहते हैं।
इस चौक में धार्मिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक गतिविधियों का सिलसिला अतीत से अब तब निर्बाध रूप से चल रहा है। चौक में हर वक्त चहल-पहल रहती है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां पर तलाई थी। जिसके आस-पास ओड़ व भाट आदि जाति के लोग रहते थे।
कोचर यहां कै से आए और इनकी उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि विक्रम संवत 1445 में राव चूड़ा ने महिपालजी को मुहता पद व मारवाड़ का काम सुपुर्द किया। महिपालजी के कोई पुत्र नहीं था इसलिए वे अकसर चिन्तित रहते थे। एक दिन सोजत से महात्मा मंडोर आए और उन्होंने महिपालजी से चिंता का कारण पूछा। महिपालजी ने बताया कि उनके पुत्र नहीं है। वह पुत्र रतन प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। महात्माजी ने कहा की आप जैन श्वेताम्बर तपागच्छ को मानने का संकल्प लेते हैं तो मैं आपको पुत्र प्राप्ति का साधन बताऊंगा। महिपालजी ने तपागच्छ जैन श्वेताम्बर धर्म स्वीकार करने का निर्णय लिया, तो महात्माजी ने कहा कि आसोज व चैत्र में नवरात्रा करें तथा वीसल देवी को मनाए तो आपको पुत्र रतन की प्राप्ति होगी। उस समय वीसल देवी कोचरी के रूप से बोलेगी और आप अपने पुत्र का नाम कोचर रखना, साथ ही तुम्हारे वंश को कोचरी का अपशुकन नहीं लगेगा। वीसल देवी का पूजन आसोज चैत्र अष्टमी व नवमी को करना। देवी वीसल की भैंस की सवारी है, पुत्र जन्मे तब अथवा विवाह पर देवी के भेंट करें रातीजोगा दिरावै, नारियल, नव नेवैद्य से पूजा करे। काला व नीला कपड़ा नहीं रखे, भैंस, बकरी सांकळ नहीं रखे, बिछिया में रणरूणा नहीं डाले, चन्द्र बाई का चूड़ा नहीं पहने आदि के नियम पालन का संकल्प करवा लिया। महीपालजी ने सब नियम कबूल किए । वीसल देवी की पूजा अर्चना की जिससे उनको पुत्र-धन प्राप्त हुआ, कोचरी बोली तब कोचर नाम दिया। महीपालजी कोचरजी के साथ मंडोवर छोड़कर फलौदी में आकर बस गए। विक्रम संवत 1616के बाद महाराजा सूरसिंह के साथ उरजोजी कोचर वंशी बीकानेर आये। उरजोजी के आठ बेटे थे। बेटे रामसिंह, भाखर सिंह, रतन सिंह, भीमसिंह पिता के साथ बीकानेर आ गये। अन्य फलौदी व अन्य स्थानों पर बस गए। उरजोजी के वंशज तब से अब तक इस चौक में रहते हैं।
उरजोजी का स्मारक पगलियां गंगाशहर रोड पर आज भी विद्यमान हैं। उरजोजी के कोचरों के चौक स्थित मकान को ‘बल्लभ स्मारक भवनÓ के रूप में विकसित किया गया है। प्रत्येक कोचर परिवार कार्तिक सुदी दूज (भाई बीज) के दिन कोचरों के चौक में पंच मंदिर में उरजोजी के थान (स्मारक) तक प्रभात फेरी के रूप में जाते हैं। वहां विधि-विधान से उरजोजी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद सभी कोचर दादाबाड़ी (गंगाशहर मार्ग) पर पहुंचते हैं, जहां गुरु वल्लभ सूरी की पूजा की जाती है। कोचर परिवार के लड़के के शादी करके आने पर तथा बेटी की विदाई से पूर्व उरजोजी व भोमियांजी के मंदिर के धोक लगाते हैं।
कोचर परिवार की कुल देवी वीसल देवी की भी वर्ष में दो बार निकटवर्ती करमीसर गांव स्थित देवी के मंदिर में पूजा करते हैं। चैत्र सुदी अष्टमी व आसोज सुदी नवमी (नवरात्रा) के दिन पूजा अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ मेले का रूप ले लेती हैं।
धार्मिक प्रवृत्ति के कोचर परिवार अपने पूर्वज महिपालजी द्वारा जैन मुनि को दिए गए संकल्प का आज भी पालन करते हैं। अधिकतर कोचर परिवार जैन श्वेताम्बर तपागच्छ के अनुयायी है। कोचरों के चौक में विक्रम संवत 2036 से आत्म वल्लभ समुद्र पाठशाला (भाइयों का उपासरा) चल रही है। आचार्य विजय इन्द्रजिन सूरि के चातुर्मास उपदेश से प्रेरित होकर आसोज बदी ग्यारस विक्रम संवत 2036से समाज के लोग इस पाठशाला को चला रहे हैं। पाठशाला से प्रेरित होकर कई युवकों व युवतियों ने पांच महाव्रत (सत्य, अहिंसा, आचार्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह) धारण कर लिया। प्रधान विजयजी की स्मृति में चौक में जैन प्रधान वाचनालय लगभग सौ वर्ष से चल रहा है।
कोचरों के चौक में स्थित भगवान अजीतनाथ, मंदिर में सर्व श्री वल्लभ सूरि, लब्धि सूरि, आचार्य तुलसी, इंद्र दिन्न सूरि, नित्यानंद सूरि, खरतरगच्छ जैन श्वेताम्बर संघ के जिन चन्द्र सूरि आदि उनके साधु साध्वियों ने प्रवचन किए। सामूहिक उपद्यान तप व भक्ति संगीत आदि के आयोजन हुए। कोचरों के चौक में आचार्य श्री नित्यानंद सूरि की प्रेरणा से आत्मवल्लभ समुद्र जैन भोजन शाला स्थापित की गई। भोजन शाला का निर्माण कार्य रतनलाल मेघराज कोचर परिवार ने करवाया। महाराजा गंगासिंहजी के समय राजघराने का हाथी कोचरों के चौक में आता था। हाथी पर राजा की पालकी रहती। हाथी को नारियल देने पर वह पैर से फोड़कर उसमें से गिरी खाता तथा सूंड से सलाम करता था। एक शताब्दी से गाय व गोधों के लिए चौक में घास डालने की परम्परा चल रही है। इसके अलावा अमावस्या पर कुत्तों को हलवा खिलाया जाता है।
चौक के कई लोग शैक्षिक व सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहे है। युवावर्ग, कर्मचारी, मजदूर एवं प्रौढ वर्ग को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए 1965 में नेहरू शारदा पीठ महाविद्यालय की स्थापना की। कॉलेज स्थापना में भारत सेवा समाज के जिला अध्यक्ष रावतमल कोचर का उल्लेखनीय योगदान रहा। कोचरो के चौक में कई विद्वान व्यक्ति हुए जिन्होंने प्रशासनिक सेवा, राजनीति, व्यापार, समाज सेवा, चिकित्सा आदि कई क्षेत्रों में अपने चौक तथा पूरे बीकानेर का नाम रोशन किया इसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार स्व. के. एल कोचर (आई. ए. एस.), पूर्व कलक्टर चम्पालाल कोचर न्यायाधीश श्रीमती पुष्पा कोचर, आदि विद्वान हुए है। इसी क्रम में स्व. शिवबक्श कोचर ने जैन कालेज की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाईं। उन्होंने कालेज के भवन निर्माण नहीं होने तक जूते का त्याग कर दिया था। स्व. शिवबक्श कोचर की प्रतिमा पुरानी जैन कॉलेज वर्तमान जैन कॉलेज में स्थापित है।
इसी चौक के स्वर्गीय श्री रामरतन कोचर जिनका नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है इन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन (1928) पर गठित कांग्रेस सेवादल में स्वयं सेवक के रूप में कार्य किया। सन् 1930 में होने वाले सत्याग्रह आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। स्व. रामरतनजी कोचर शुरू से ही सामाजिक, आध्यात्मिक एवं लोक कल्याणकारी गतिविधियों में जुड़े रहे एवं आलोचना एवं विरोध की परवाह न करते हुए उन्होंने हरिजनों एवं अल्पसंख्यकों के कल्याण के कार्य किए। वे राजस्थान प्रदेश कांग्रेस व उसकी महासमिति के सदस्य रहे। स्व. रामरतनजी कोचर ने बीकानेर के शैक्षिक एवं अन्य विकास कार्यों में महती भूमिका निभाई। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व लाल बहादुर शास्त्री जैसे अनेक राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से उनका सीधा सम्पर्क था । स्व. कोचर की प्रतिमा जैन कॉलेज के पास 24 फरवरी 1986में स्थापित की गई। सन् 1943 में कोचरों के चौक में सामंतशाही के खिलाफ सम्मेलन आयोजित किया गया। स्व. कोचर के संयोजन में आयोजित इस सम्मेलन में अनेक नेताओं ने भाग लिया। उस समय सार्वजनिक आन्दोलन के रूप में सम्मेलन करना बड़ी बात थी। श्री रामरतन कोचर के परिवार ने आचार्य श्री नित्यानंद सूरि व जैन श्वेताम्बर तपागच्छ की प्रेरणा से गोगागेट चौराहे को विकसित किया तथा उस स्थान को वल्लभ चौक के रूप में प्रतिष्ठित किया है। भाईजी स्व रामरत्तन कोचर की पुत्री स्व. डा. शुभ कोचर ने वर्षो तक शारीरिक अक्षमता के बावजूद चिकित्सा क्षेत्र में एक अनुपम मिसाल कायम की । छोटे बच्चों की चिकित्सा में पूरे बीकानेर में वे जीवनदाता से कम नहीं थी । समय एक समान नहीं रहता । स्व. रामरत्तन कोचर का भी विपरीत समय आया । उस समय इसी चौक के सेठ गुलाबचंद कोचर का उन्हें पूरा सहयोग मिला । स्व गुलाबचंद जी कोचर का लाभू जी कटले में आफिस था । जहां पर रामरत्तन जी कोचर व गुलाब जी नियमित बैठा करते थे । स्व. गुलाब कोचर एक सह्दय, पर पीड़ा में सहायक एवं व्यवहारिक व्यक्ति थे । अपने सभी भाईयों से उनका आत्मीयता व्यवहार था । केवल कोचर समाज ही नहीं हर वर्ग में उनकी सहज आत्मीयता थी । पत्रिका ‘वैष्णव के आदि सम्पादक ज्योतिषी आचार्य राज का भी गुलाबचंद कोचर कार्यालय में नियमित आना जाना था । वे बताया करते थे कि सेठजी बहुत ही पर दु:ख कातर स्वभाव के थे।
ज्योतिष संबंधी सलाह में वे प्राय: अपने पुत्र चन्द्र कुमार को लेकर बहुत चिन्तित रहा करते थे । आचार्य राज ने उस समय कई बार स्वं गुलाब जी कोचर को आश्वस्त किया कि आप बिल्कूल चिंता न करें । एक समय आयेगा, मै रहूं ना रहूं, आप रहें ना रहें परन्तु चन्द्र कुमार आपके व्यापार का ही नही पूरे समाज में आपका नाम रोशन करेगा और प्रतिष्ठा बढ़ायेगा । ये बात वर्ष १९६५-६८ के बीच की है । आज हम देखते है कि देखते है कि स्व. गुलाब चंद कोचर के परिवार में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण कोचर समाज में चन्द्र कोचर का अद्वितीय स्थान है ।
सन् 1947 में कोचरों के चौक में ‘अमन की बैठक एक वृहद आयोजन रखा गया। इस आयोजन में सभी समुदाय के लोगों ने भाग लिया। बीकानेर रियासत के अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री जसवंत सिंह, वित्तमंत्री खुशाल चंद डागा, कानून मंत्री सूरजकरण आचार्य व गृहमंत्री चौधरी हरदत सिंह, कुंभाराम आर्य व रघुवर दयाल गोयल आदि बैठक में शामिल हुए। कोचरों के चौक में वर्षों से पाटे रहे है। पाटों की देख-रेख कोचर पंचायत करती है। चौक के पाटों के अलावा कु छ एक घरों के आगे भी पाटे रखे हुए है। इन पाटो पर राजनीतिक एवं सामाजिक चर्चा देर रात तक चलती रहती हैं। चौक के पाटे पर कठोत रखकर पहले हर वाशिंदे का मांगलिक कार्य शुरू किया जाता था।  पाटे पर बैठकर ताश व चौपट आदि के खेल भी चलते रहते हैं। चौक में पंचायत की चौकी भी स्थापित हैं। इन्हीं पाटों व पंचायती की चौकी पर अनेक सभाए हुई,
अधिकतर कोचर परिवारों का व्यापार कपड़ा व डायमंड का है। अमृतसर में निर्मित होने वाली लूंगी 501 के निर्माता बंशीलाल कोचर इसी चौक के रहने वाले है। चौके के अधिकतर लोग धार्मिक एवं एकेडमिक रूप से शिक्षित है। वर्तमान में चौक के युवा वर्ग का रुझान जवाहरात एवं अन्य व्यवसायों में बढ़ रहा है।

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