जानिए बाबा अमरनाथ की कहानी
वैष्णव पत्रिका : एम.एस व्यास : अमरनाथ गुफा को ‘अमरेश्वर’ कहा जाता है। कुछ लोग इसे बाबा बर्फानी भी कहते हैं । यह यात्रा जून और जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यह अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है। हिन्दू माह के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाली यात्रा पूरे सावन महीने तक चलती है। ऐसी माना जाता है कि भगवान शिव इस गुफा में श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को बाबा अमरनाथ के दर्शन अति विशेष माने जाते हैं । रक्षा बंधन की पूर्णिमा पर छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय पर्वत मालाओं में स्थित है। समुद्र तल से 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। अमरनाथ यात्रा पर जाने के मुख्य दो रास्ते हैं- एक पहलगाम और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। यानी देशभर के किसी भी क्षेत्र से पहले पहलगाम या बालटाल पहुंचना होता है। इसके बाद पैदल यात्रा की जाती है। आओ जाने बाबा अमरनाथ कुछ रोचक तथ्य :
1.कैसे बनता है बाबा अमरनाथ का बर्फानी शिवलिंग
गुफा का आकार लगभग 150 फुट का है और इसमें आकाश से बर्फ के पानी की बूंदें अलग अलग स्थानों पर टपकती रहती हैं। गुफा में एक स्थान है, जहाँ टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि अन्य जगह टपकने वाली बूंदों से कच्ची बर्फ बनती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड बन जाते हैं।
गुफा के सेंटर में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है। चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसे क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद बूंद पानी गिरता है लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं? अमरनाथ गुफा की तरह कई गुफाएं हैं। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं और वहां पर छत से बूंद-बूंद पानी टपकता है लेकिन वहां कोई शिवलिंग नहीं बनता।
2.क्या है इस गुफा का प्राचीन इतिहास ?
कश्मीर घाटी में राजा दक्ष , ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। प्राचीन मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई और घाटी ने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। तब ऋषि कश्यप ने जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। तभी भृगु ऋषि पवित्र हिमालय की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत मालाओं में भृगु ऋषि ने सबसे पहले अमरनाथ की पवित्र गुफा और बाबा बर्फानी के दर्शन किये । माना जाता हैं की तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का प्रमुख देवस्थान बन गया, क्योंकि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी।
3.गुफा के ऐतिहासिक प्रमाण ?
अमरनाथ गुफा को पुरातत्व विभाग 5 हजार वर्ष प्राचीन मानता हैं अतः यह मान सकते हैं की महाभारत काल में यह गुफा मौजूद थी। हिमालय के प्राचीन पहाड़ों को लाखों वर्ष पुराना माना जाता है। उनमें कोई गुफा बनाई गई होगी तो वह हिमयुग के दौरान ही बनाई गई होगी अर्थात आज से 12 से 13 हजार वर्ष पूर्व।
वेद पुराणों के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। कहते हैं कैलाश को जो जाता है, वह मोक्ष को पाता है। पुराण कुछ महाभारतकाल में और कुछ बौद्धकाल में लिखे गए।
4.अमरनाथ यात्रा का प्राचीन इतिहास
वैसे तो अमरनाथ की यात्रा महाभारत के काल से ही की जा रही है। बौद्ध काल में भी इस मार्ग पर यात्रा करने के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की ‘राजतरंगिनी तरंग द्वितीय’ में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वीं) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ यात्रा करने का प्रचलन कितना पुराना है।
बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है, जहां तीर्थयात्रियों को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग, 3454 मीटर), पंचतरंगिनी (पंचतरणी, 3,845 मीटर) और अमरावती शामिल हैं।
एक अंग्रेज लेखक लारेंस अपनी पुस्तक ‘वैली ऑफ कश्मीर’ में लिखते हैं कि पहले मट्टन के कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ के तीर्थयात्रियों की यात्रा कराते थे। बाद में बटकुट में मलिकों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली, क्योंकि मार्ग को बनाए रखना और गाइड के रूप में कार्य करना उनकी जिम्मेदारी थी। इन्हें मौसम की जानकारी भी होती थी। आज भी चौथाई चढ़ावा इस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। पहलगांव का अर्थ होता है गड़रिए का गांव।
जब आक्रमण हुआ तो 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग 300 वर्ष की अवधि के लिए अमरनाथ यात्रा बाधित रही। कश्मीर के शासकों में से एक था ‘जैनुलबुद्दीन’ (1420-70 ईस्वी), उसने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। फिर 18वीं सदी में फिर से शुरू की गई। वर्ष 1991 से 95 के दौरान आतंकी हमलों की आशंका के चलते इसे इस यात्रा को स्थगित कर दिया गया था।
स्वामी विवेकानंद ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि मैंने सोचा कि बर्फ का लिंग स्वयं शिव हैं। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है।