वैष्णव पत्रिका :- कोलकाता महानगर में जहां प्रवासी बीकानेरी सर्वाधिक संख्या में निवस करते है । वहां भी गणगौर उत्सव मनाया जाता है । कोलकाता में गणगौर उत्सव की शुरूआत बलदेव जी मंदिर में गवरजा व ईसर की काष्ट की प्रतिमाओं के सार्वजनिक पूजन व सवारी से प्रारम्भ होता है । प्रवासी राजस्थानी बहुल यहां के बड़ाबाजार क्षेत्र में मातृशक्ति एवं अर्चना के अतिमनोहर स्वरूप के दर्शन होते है । यहां गणगौर के गाये जाने वाले गीतों में लोक संस्कृति अपने विभिन्न रंगों एवं रूपों में झलकती है । तीज और चौथ दोनों दिन सभी गवरों की शोभा यात्रा रथ पर निकलती है जिसमें तरह-तरह की झांकियां एवं गायन मण्डलियां साथ चलती है । यहां मिट्टी की बनी हुई गणगौर प्रतिमाओं का चैत्र शुक्ल पंचमी की संध्या को विधिवत मां गंगा में विसर्जन कर दिया जाता है ।
कोलकाता की हर गणगौर मडंली के पाग का सदा से चलता आ रहा एक विशिष्ट रंग होता है । पूरे वर्ष भर बीकानेरीयों के विवाह आदि शुभ अवसरों पर जितनी संख्या में बीकानेरी पांग गिनती में आती है उससे कई गुणा ज्यादा इस शोभा का दर्शन गणगौर उत्सव में भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं के पहनी होती है । कोलकाता की गणगौर में विशेष रूप से बलदेवजीकी गणगौर, पारखकोठी गणगौर, गोवर्धननाथ जी, नींबूतल्ला, बांसतल्ला, हंसपुकुर, गांगुलीलेन, कालाकार स्टीट, विधाननगर, हावड़ा व मनसापूरण गणगौर लोकप्रिय है ।